2019 के लोकसभा चुनाव भले ही अभी दूर हों, लेकिन चुनाव को लेकर खेमेबंदी शुरू हो गयी है। इसी खेमेबंदी के तहत बसपा सुप्रीमो मायावती और समाजवादी पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष अखिलेश यादव को अहसास हो चुका है कि बीजेपी को सत्ता से बेदखल करना तो नए वजूद को तलाशना होगा। इसी नई तलाश में जो फॉर्मूला इजात किया गया है उसके मुताबिक अगर साइकिल, हाथी और शंख एक हो जाए तो कोई सामने नहीं टिक सकेगा।
यहां साइकिल और हाथी से मतलब समाजवादी पार्टी एवं बहुजन समाज पार्टी है। जो कि पहले से ही एक हो चुके हैं। इसके बाद अगला कदम शंख की ओर है। शंख का मतलब ब्राह्मणों से है। चूंकि दोनों ही दलों के नेता समझ चुकें हैं कि यदि यादव, दलित और ब्राह्मण एक साथ आ जाए तो सत्ता प्राप्त करने में कोई कठिनाई नहीं होगी।
समाजवादी खेमे का मानना है कि ब्राह्मण समुदाय बीजेपी से कहीं न कहीं नाराज चल रहा है। जिसका कारण प्रचण्ड बहुमत के बाद भी बीजेपी के ओर से बनाए गये मुख्यमंत्री का ब्राह्मण न होना है। जिसके बाद समाजवादी खेमे को लग रहा है कि बीजेपी के सवर्ण वोटबैंक में सेंध लगानी है तो ब्राह्मणों की नाराजगी का लाभ उठाते हुए उन्हें अपनी ओर मिलाया जा सकता है।
क्या कहते हैं आंकड़े
बताते चलें कि यूपी में इस समय विधानसभा के कुल 400 सदस्यों में 67 ब्राह्मण विधायक हैं। इनमें से 58 विधायक बीजेपी के पास है। जाहिर तौर पर अगर कोई भी खेमा ब्राह्मणों को लुभाने में सफल रहता है तो उसका सीधा प्रभाव बीजेपी पर ही पड़ेगा।