Tuesday 1 August 2017

अपार क्षमताओं से परिपूर्ण होने के बाद भी कैसे धारण करें विनम्रता


वर्तमान समय में किसी को जरा सी भी ताकत मिल जाने पर वह स्वंय को सर्वश्रेष्ठ समझ दूसरों को नरजअंदाज करने लगता है। वास्तविक तौर पर वह यह भूल जाता है कि यदि उसे कोई शक्ति या विशेष गुणों से सुसज्जित किया गया है तो अवश्य ही वह कुछ अच्छा करने के लिए दिया गया होगा। लेकिन आमतौर पर लोग ताकत, पद, वैभव के मद में चूर हो जाते है। वास्तविक तौर पर हमें कितनी भी शक्तियां मिल जाए लेकिन विनम्रता नहीं छोड़नी चाहिए।
विनम्रता का अद्भुत उदाहरण वाल्मीकि रामायण में हनुमान जी द्वारा संजीवनी बूटी लेने जाने के दौरान देखने को मिलता है। लक्ष्मण के मूर्क्षित हो जाने पर प्रभु श्री राम संजीवनी लाने की जिम्मेदारी अपने सबसे अधिक विश्वासयोग्य और अपार शक्तियों से परिपूर्ण सेवक हनुमान को देते है। इसके बाद जब अपार शक्तियों से परिपूर्ण हनुमान जी जब संजीवनी लेने जाते है तो उनकी विनम्रता और ताकत का अद्भुत मेल जोल देखने को मिलता है। हनुमान जी सूर्य देव से पहले तो प्रार्थना करते है फिर उनको साफ तौर पर अल्टीमेटम देते हैं।


हे सूरज बस इतना याद रहे कि संकट एक सूरज वंश पे है,
लंका के नीच राहु द्वारा आघात दिनेश अंश पे है।
इसलिए छिपे रहना भगवन जब तक न जड़ी पहुंचा दूं मैं,
बस तभी प्रकट होना दिनकर जब संकट निशा मिटा दूं मैं।
मेरे आने से पहले यदि किरणों का चमत्कार होगा,
तो सूर्यवंश में सूर्य देव निश्चित ही अंधकार होगा।
आशा है स्वल्प प्रार्थना यह, सच्चे जी से स्वीकारोगे,
लक्ष्मण की क्षतिग्रस्त अवस्था को होकर करुणार्ध निहारोगे।

हनुमान जी विनम्रता पूर्वक निवेदन करने के बाद सूर्य देव को चेतावनी देते हुए कहते हैं कि 

अन्यथा क्षमा करना दिनकर, अंजनी तनय से पाला है,
बचपन से जान रहे हो तुम हनुमत कितना मतवाला है।
मुख में तुमको धर रखने का फिर वही क्रूर साधन होगा,
बंदी मोचन तब होगा,जब लक्ष्मण का दुःख भंजन होगा।

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