Saturday 11 November 2017

काला दिन : जब उन्मादी भीड़ ने किया दलित नेता की आबरू पर हमला



यूपी की पूर्व मुख्यमंत्री और बहुजन समाज पार्टी की अध्यक्ष मायावती को कई श्रेय प्राप्त हैं। 15 जनवरी 1956 को दलित परिवार में जन्मी मायावती ने शुरुआती दिनों में ख्वाब में भी नेत्री बनने की कोई अभिलाषा नहीं पाली थी। लेकिन 1977 में कांशीराम के संपर्क में आने के बाद उन्होंने नेत्री बनने का निर्णय लिया। मायावती ने मुजफ्फरनगर के कैराना से लोकसभा का चुनाव लड़ा और फिर जून 1995 में वह पहली बार यूपी की मुख्यमंत्री बनीं। इसके बाद उन्हें अभी तक चार बार मुख्यमंत्री पद की शपथ ग्रहण करने का सौभाग्य प्राप्त हो चुका है। 

...इसलिए आज भी कुंवारी है बसपा सुप्रीमो मायावती

शुरुआती दिनों में दलित आंदोलन की पहली समझ सामान्य लोगों की तरह ही मायावती को भी बाबा साहब डॉ. अंबेडकर की जीवनी पढ़कर ही मिली। इसके बाद किताबों के माध्यम से उनके अन्दर बाबा साहेब के उत्तम कार्यों की समझ बढ़ती चली गयी। मायावती ने अपनी आत्मकथा में जिक्र करते हुए बताया है कि, "मैं उस समय कक्षा 8 में पढ़ती थी। एक दिन पिता से पूछा कि अगर मैं भी बाबा साहब डॉ. अंबेडकर जैसे काम करूं तो क्या लोग मुझे भी याद रखेंगे और वो मेरी पुण्यतिथी को उसी तरह से मनाएंगे?" 
इसके बाद उन्होंने अपने जीवन में भी इस बात पर गौर किया कि दलितों की बस्ती हमेशा ही अलग रहती है। इसी के साथ वहां सवर्ण लोग जाना पसंद नहीं करते। यह देखकर ही मायावती ने आजीवन अविवाहित रहने का निर्णय लिया। इस निर्णय के पीछे का कारण था कि वह जीवन भर एकनिष्ठ होकर बहुजन समाज की सेवा कर सकें। 


इतिहास की किताबों में आज भी 2 जून 1995 का दिन काला दिन के नाम से दर्ज है। यह वही दिन है जब उन्मादी भीड़ ने बसपा सुप्रीमों को सबक सिखाने के लिए दलित नेता की आबरू पर हमला कर दिया था। यह प्रकरण राज्य अतिथि गृह में सामने आया था। अजय बोस की किताब 'बहनजी' के अनुसार 1993 में हुए चुनाव के बाद सपा बसपा के बीच ऐतिहासिक गठबंधन हुआ। लेकिन मनमुटाव के चलते गठबंधन टूटा और बहनजी ने समर्थन वापस ले लिया। इस वापसी के बाद मुलायम सरकार अल्पमत में आ गयी और नाराज सपा कार्यकर्ता और विधायक मीराबाई मार्ग स्थित स्टेट गेस्ट हाउस पहुंच गये। इसी गेस्ट हाउस में मायावती कमरा नंबर-1 में ठहरी हुई थीं। 
कहा जाता है कि 1995 में हुए गेस्ट हाउस कांड में गुडों ने बसपा सु्प्रीमों को कमरे में बंद कर उन्हें मारा और उनकी इज्जत से खिलवाड़ करना चाहा। लेकिन उस दौरान बीजेपी विधायक ब्रम्हदत्त द्विवेदी ने बिना किसी परवाह के गेस्टहाउस का दरवाजा तोड़ मायावती की जान बचाई। इस प्रकरण के बाद कई बार सुप्रीमों मायावती ने खुद कहा कि जब मेरी पार्टी के लोग डरकर भाग गये थे तब ब्रम्हदत्त द्विवेदी ने अपनी जान पर खेलकर मेरी जान बचाई। 

इस प्रकरण के बाद जब ब्रम्हदत्त द्विवेदी की हत्या की गयी तो मायावती खुद उनके घर गयीं औऱ फूट फूट कर रोईं। फिर जब ब्रम्हदत्त द्विवेदी की विधवा पत्नी ने चुनाव लड़ा तो बसपा सुप्रीमों ने उनके खिलाफ उम्मीदवार नहीं उतारा औऱ खुद उन्हें वोट देने की अपील की। 


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