Sunday 2 September 2018

अपने ही बिगाड़ रहे सपा, बसपा, भाजपा और कांग्रेस का खेल


आगामी लोकसभा चुनाव 2019 को लेकर सभी सियासी दल अपनी—अपनी तैयारियों में लगे हुए हैं। तय रणनीति के मुताबिक सभी दल जमीनी स्तर पर अपनी-अपनी जोर आजमाइश कर रहे हैं। आलम यह है कि जहां सियासी दल एक ओर अन्य दलों के बड़े चेहरों को अपने साथ लाकर वोटों के गणित में बढ़त का खेल तैयार कर रहे हैं। वहीं, इसी बीच समाजवादी पार्टी के नेतृत्व से खफा शिवपाल यादव ने पार्टी से नाराजगी के बाद चुनावी सरगर्मी को और भी बढ़ा दिया है। समाजवादी सेक्युलर मोर्चा के गठन के बाद एक चीज जो सभी को साफ दिखाई दे रही है वह यह है कि भले ही शिवपाल आगामी चुनाव में खुद कोई बड़ी बढ़त न ले पाए, लेकिन वह अन्य दलों को नुकसान जरूर पहुंचाने वाले हैं। हालांकि राजनीतिक जानकारों का मत है कि यह सेक्युलर मोर्चा गठबंधन के लिए तो नहीं लेकिन भाजपा के लिए फायदेमंद जरूर होगा। वहीं, महागठबंधन से कथिततौर पर भयभीत भाजपा में भी शिवपाल के इस फैसले के बाद खुशी की झलकियां देखी जा सकती है। 

पूर्व लोकसभा चुनाव में मोदी लहर की बात की जाए तो यूपी की कुल 80 सीटों में से 71 सीटें भाजपा के खातें में गयी थीं। जबकि 2 सीट कांग्रेस, 2 अपना दल और 5 सीटें सत्ताधारी समाजवादी पार्टी के खाते में थीं। हालांकि 3 सीटों पर उपचुनाव के बाद भाजपा को गोरखपुर, फूलपुर औऱ कैराना की सीट पर झटका लगा था। जिसके बाद विरोधी दलों की ओर से इस स्वर्णिम पल का जमकर स्वागत किया गया और सत्ताधारी भाजपा की आलोचनाओं में जमकर कसीदे पढ़े गयें। 


अपने बिगाड़ रहे खेल 

चुनाव से पहले जिस तरह राजनेता दल बदल कर रहे हैं वह कहीं न कहीं आगामी चुनाव को प्रभावित जरूर करने वाला है। हाल ही के दिनों की बात की जाए तो बीजेपी के वरिष्ठ नेता रहे राजेन्द्र गांधी कुशवाहा ने राष्ट्रीय अध्यक्ष औऱ प्रदेश अध्यक्ष डॉ महेन्द्रनाथ पांडेय को पत्र के जरिए अपना इस्तीफा भी दे दिया। वहीं बुलंदशहर से दिग्गज नेता और जिला पंचायत अध्यक्ष प्रदीप चौधरी के खिलाफ भी अविश्वास प्रस्ताव लाने के लिए आवेदन पत्र दिया गया है। इस आवेदन पत्र में 53 में से 33 सदस्यों द्वारा आरोप लगाना साफ तौर पर पार्टी के भीतर की चल रही कलह को दिखाता है। 

भाजपा के अलावा सपा में भी राजनीतिक कलह किसी से छिपी नहीं हुई है। चुनाव से ठीक पहले जहां एक ओर शिवपाल यादव पार्टी से अलग होकर वरिष्ठ नेताओं के एक धड़े को अलग ले जा रहे है। वहीं पंखुड़ी पाठक जैसी युवा सोच वाली प्रवक्ता का पार्टी छोड़ शीर्ष नेतृत्व पर आरोप लगाना कहीं न कही युवाओं को पार्टी से अलग करने का काम कर रहा है। इन बड़े नामों के साथ ही इस लिस्ट में बस्ती से नेता और पूर्व जिला पंचायत सदस्य अरविन्द पाल और राजेश यादव जैसे तमाम अन्य नेताओं का पार्टी छोड़ना कहीं न कहीं चुनाव से पहले समस्या खड़ी कर सकता है। 

भले ही सपा और भाजपा से नाराज नेता कांग्रेस का दामन थाम रहे हों, लेकिन सच यह है कि कांग्रेस भी अपनी पार्टी के सभी नेताओं को एक सूत्र में बांध कर रख पाने में अक्षम है। आलम यह है कि मुख्यमंत्री खुद मंच से ऐलान कर रहे हैं कि कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी को उनकी पार्टी के लोग स्वीकार करने को तैयार नहीं है। वहीं राहुल के नेतृत्व में गठबंधन और सीटों को लेकर उठ रहे सवालों से भी कोई अनभिज्ञ नहीं है। 

लोकसभा चुनावों को लेकर हासिए पर चल रही बहुजन समाज पार्टी भी यूपी उपचुनाव के बाद से खासा उत्साह में है। लेकिन अन्दर बाहर का दौर उस पार्टी में भी पूरी तरह से जारी है। हाल ही में पूर्व मंत्री और डुमरियागंज सीट से पांच बार विधायक रह चुके मलिक कमाल यूसुफ ने भी पार्टी को अलविदा कह दिया। वहीं पूर्व चुनावों के परिणाम के बाद जाहिर तौर पर बसपा में सीट के बंटवारे और टिकट को लेकर कई अन्य नेता भी किनारा कर सकते है।


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