Friday 8 September 2017

मिल जाए जूठन ही तो शान्त हो जाए पेट की आग...

                             
Lucknow. सो गए  गरीब के बच्चे यह सुनकर, ख्वाब में फरिश्ते आते हैं रोटियां लेकर। मशहूर शायर की यह बात वाकई में गरीब बच्चों की भूख को काफी हद तक बयां करती है। लेकिन अगर वास्तविक तौर पर गरीब के पेट में लगी भूख की आग को देखना हो तो ज्यादा दूर जाने की जरूरत नहीं है बस किसी ठेले या रेस्टोरेंट के बगल में खड़े छोटू या गुड़िया की ओर देख लेना ही काफी होगा। वह केवल उस खाने की बची हुई जूठन को देखकर मन ही मन विचार करते है कि किसी तरह वह ही उन्हें नसीब हो जाए। इसके पीछे का कारण यह है कि आज का समाज इतना अधिक मतलबी हो गया है कि वह भले ही खुद न पचा पाने की दशा में खाने को फेंक दे, लेकिन उसे किसी गरीब के मुंह का निवाला बनने में वह शर्मिंदगी महसूस करता है।
उसके बाद जब कोई गरीब भीख मांगता हुआ दिख जाए तो बातें ऐसे करता है "करने को कोई काम नहीं है। कोई नौकरी कर लो। मेहनत कर पेट भरो।" जैसे बड़ी बड़ी कंपनियां उस गरीब का मेहनताना लेने के लिए लाइन लगा कर खड़ी हो। और सरकारी नौकरी तो जैसे उस गरीब के लिए ही इंतजार कर रही हो।

आज एक और जहां देश नये आयामों को छू कर खुद को विकास का डंका बजा रहा है वहीं उसका दूसरा पहलू यह भी है कि देश का भविष्य भूंखे पेट सोने को मजबूर है। गरीबों के लिए सरकार भले ही तमाम तरह की योजनाएं बनाती हो लेकिन जमीनी स्तर पर उनका कोई प्रभाव नहीं दिखता है। गांवों में सरकारी राशन कोटेदार गायब कर देते हैं तो मिड डे मील का खाना बाबुओं और राजनेताओं के खाते में पहुंच जाता है। हां लेकिन कागजों पर आज भी गरीब भूंखे पेट नहीं सो रहा और भारत विकसित राज्य बन रहा है।



कुमार विश्वबंधु ने क्या खूब लिखा है

जो भूखे थे
वे सोच रहे थे रोटी के बारे में
जिनके पेट भरे थे
वे भूख पर कर रहे थे बातचीत
गढ़ रहे थे सिद्धांत
ख़ोज रहे थे सूत्र...



गरीब की भूख और सरकार की योजनाओं की बात की जाए तो बस इतना ही कहना काफी होगा कि अगर गरीब के घर में दो रोटी है तो सरकार को उसमें से डेढ़ रोटी चाहिए। यह डेढ़ रोटी उस गरीब से तमाम तरह के टैक्सों के रूप में ली जाएगी। फिर अगर किसी दिन उसी गरीब के घर एक भी रोटी नहीं है और बच्चों को भूख से तड़पता देख वह सरकारी दफ्तर में किसी अधिकारी के समकक्ष रोटी की गुहार लगाने पहुंच जाता है तो उसे मात्र योजनाएं गिनाई जाती हैं मिलता कुछ नहीं है। 

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