Tuesday 29 August 2017

परिस्थितियों का दास नहीं इंसान, न मानों हार तो सफलता होगी आपके पास


दुनिया में ज्यादातर लोग असफल होने के बाद हार मान लेते है और प्रयास करना छोड़ सामान्य जीवन जीना प्रारम्भ कर देते है। लेकिन इसी दुनिया में कई ऐसे लोग भी हुए जिन्होंने लगातार मिल रही असफलताओं से निराश न होकर अपना मुकाम हासिल किया। इस लोगों के अनवरत प्रयास ने यह सिद्ध कर दिया कि भले ही कितनी भी कठनाईयां सामने क्यों न आए अगर इंसान वास्तविकता में सफल होने का ठान ले तो उसे कोई भी परिस्थितियां रोक नहीं सकती हैं।

KFC

KFC आज  एक बड़े ब्रांड के तौर पर सभी के सामने है। लेकिन KFC को लाने वाले कर्नल सैंडर्स की कहानी वास्तव में आपके होश उड़ा देगी। कर्नल सैंडर्स का पूरा जीवन कठिनाईयों में बीत गया। 5 साल की उम्र में उनके पिता का देहान्त हो गया। इसके बाद 16 साल की उम्र में उन्हे स्कूल छोड़ना पड़ा। फिर 17 साल की उम्र तक पहुंचते पहुंचते उन्हें 4 नौकरियों से निकाला जा चुका था। 18 साल की उम्र में शादी करने के बाद उन्होंने 22 साल तक कंडक्टर की नौकरी की। फिर आर्मी में गये और वहां से भी निकाल दिये गये। Law में दाखिला लेना चाहा लेकिन रिजेक्शन का सामना करना पड़ा। फिर लोगों का बीमा करने का काम शुरू किया लेकिन उसमें भी असफलता हाथ लगी। इसके बाद 20 साल की उम्र में पत्नी ने इस असफल आदमी से किनारा कर लिया और बच्ची को भी अपने साथ ले गयी।

पत्नी के जाने के बाद उन्होंने होटल में बतौर बावर्ची काम करना शुरू किया। इसके बाद उन्होंने खुद की बेटी को किडनैप करने का प्रयास किया लेकिन इस दौरान भी असफलता ने इनका साथ नहीं छोड़ा। 65 साल की उम्र में रिटायर होने के बाद उन्हें सरकार की ओर से 105$ का चेक मिला। इसके बाद एक बार उन्होंने पेड़ के नीचे बैठ कर अपनी जिंदगी के बारे में सोचा और उन्हें एहसास हुआ कि वह कितने अच्छे कुक हैं। फिर उन्होंने 87$ की मदद से चिकन फ्राई कर उसे गली गली बेचना शुरू किया। इसके बाद 65  वर्षो तक कई बार आत्महत्या के प्रयास में असफल रहने वाला व्यक्ति कर्नल सैंडर्स 88 साल की आयु में अरबपति यानि KFC(Kentucky Fried Chicken) का मालिक बना। आज दुनिया में KFC कितना प्रसिद्ध है इस बारे में किसी को बताने की जरुरत नहीं है।

Amul

कालीकट मद्रास के रहने वाले वर्गीस कुरियन इंजीनियरिंग करने के बाद गुजरात के आणंद आए। यहां उन्होंने नौकरी के साथ ही भारत को दूध के क्षेत्र में आत्मनिर्भर बनाने का सपना देखा। इसके बाद 11 माह की कड़ी मेहनत के बाद उन्होंने मिल्क प्रासेसिंग प्लांट तैयार कर आपरेशन फ्लड की शुरूआत की। इस आपरेशन के तहत उन्होंने किसानों का दूध इकट्ठा कर गुजरात मिल्क मार्केटिंग फेडरेशन में 11 हजार गांव औऱ 20 लाख किसानों को जोड़ने का काम किया। इसके बाद आज उनका बनाया ब्रांड अमूल देश में सफल कारोबार कर रहा है।

Nirma 

अहमदाबाद के करसन भाई पटेल के बचपन का जीवन बहुत ही गरीबी में बीता। गरीबी के कारण वह डिग्रीयां हासिल नहीं कर पाए और उन्होंने ग्रेजुएट होने के बाद ही लैब में काम करना शुरू कर दिया। कुछ अलग करने की चाह में उन्होंने 1969 में निरमा की शुरूआत की। इसके बाद घर के पीछे ही पाउडर बनाना शुरू किया। इस पाउडर को वह खुद ही घर घर जाकर बेचते। इसके बाद उन्होंने कपड़े साफ न होने पर पैसे वापस करने की स्कीम चलाई। लोगों ने प्रभावित होकर निरमा का इस्तेमाल करना शुरू किया और आज निरमा एक ब्रांड के तौर पर जाना जाता है।

Ford

फोर्ड कंपनी आज पूरी दुनिया में विख्यात है। इस कंपनी को नाम कंपनी के मालिक हेनरी फोर्ड के नाम पर मिला है। हेनरी फोर्ड की शुरूआत भी असफलताओं से हुई। उन्होंने शुरूआत में दो कंपनियां डाली लेकिन वह विफल हो गये। इसके बाद भी उन्होंने अपने प्रयासों को नहीं रोका औऱ अपना मुकाम हासिल किया। हेनरी फोर्ड मोटरकार बनाने में असेंबली लाइन का प्रयोग करने वाले सबसे पहले उघोगपति थे।


Apple

Apple कंपनी के मालिक स्टीव जॉब्स के पास रहने के लिए कमरा औऱ सोने के लिए बिस्तर नहीं था। वह दोस्तों के घर पर फर्श पर सो जाया करते थे। इसी के साथ खाना खाने के लिए वह मन्दिरों का सहारा लेते थे। उस दौरान किसी ने भी नहीं सोचा था कि स्टीव जॉब्स कभी जानी मानी कंपनी के मालिक बन जाएंगे। बताते चले कि 17 साल की उम्र में स्टीव को कॉलेज में दाखिला मिला। पढ़ाई के दौरान उन्हें लगा कि उनके माता-पिता की सारी कमाई पढ़ाई में ही खर्च हो रही है। इसके बाद उन्होंने कॉलेज ड्रॉप करने का फैसला किया और सोचा कि कोई काम करूंगा।


उस समय उन्हें लगा कि उनका यह निर्णय शायद सही नहीं था, लेकिन यही निर्णय सबसे सफल सिद्ध हुआ। कालेज छोड़ने के बाद उन्होंने शेरीफ और सैन शेरीफ टाइपफेस (serif and san serif typefaces) सीखे (शेरिफ टाइपफेस में शब्दों के नीचे लाइन डाली जाती है)।  इसी टाइपफेस से अलग-अलग शब्दों को जोड़कर उन्होंने टाइपोग्राफी तैयार की, जिसमें डॉट्स होते है। इसके दस साल बाद उन्होंने पहला Macintosh computer डिजाइन किया।

Tuesday 8 August 2017

नहीं हो पा रहा बैलेंस, आखिर कौन सी करवट लें जो हो सके इंसाफ


महिलाओं पर हो रही दहेज उत्पीड़न की घटनाओं पर सरकार किस करवट बैठे जिससे सभी के साथ इंसाफ हो सके। इस कानून को यदि मजबूती दी जाती है तो इसका दुरप्रयोग होता है। अगर इसमें कटौती की जाती है तो महिलाएं इसकी बलि चढ़ती है और छूट का दुरप्रयोग होता है। गत दिनों सुप्रीम कोर्ट की ओऱ से इस मामले में अहम निर्देश जारी किये गये जिसके बाद 498-ए में कई बदलाव देखने को मिले। इन बदलावों के बाद साफ तौर पर महिला समाज के साथ नाइंसाफी होती दिखाई दे रही है।
सुप्रीम कोर्ट के निर्देश के बाद अब पति और ससुराल उत्पीड़न की शिकायत के बाद त्वरित गिरफ्तारी नहीं हो सकेगी। गिरफ्तारी से पहले इस बात की जांच होगी की शिकायत सही है या नहीं उसके बाद कोई कार्रवाई हो सकेगी। पड़ताल पुलिस नहीं बल्कि अन्य समिति के द्वारा की जाएगी। कोर्ट के मुताबिक जांच की इस नई समिति का नाम परिवार कल्याण समिति होगा। इसकी रिपोर्ट के बिना पुलिस कोई कार्रवाई नहीं करेगी। हालांकि जांच कमेटी की रिपोर्ट को मानना जांच अधिकारी या मजिस्ट्रेट को मानना जरूरी नहीं होगा। कोर्ट की ओर से यह नए निर्देश 27 जुलाई 2017 को जस्टिस आदर्श कुमार गोयल और जस्टिस उदय उमेश ललित की बेंच ने दिया है।
कोर्ट का साफ तौर पर कहना है कि महिलाएं इस कानून का गलत इस्तेमाल कर रही है। जिसके चलते झूठे केस सामने आ रहे है। झूठे केसों के चलते ससुराल वालों को बिना अपराध के ही गिरफ्तारी और पुलिस कार्रवाई का सामना करना पड़ रहा है।

इस मामले का एक पहलू यह भी है कि कानून में कड़ाई कम होने के बाद महिलाओं के साथ होने वाले दहेज उत्पीड़न के अपराधों में वृद्धि होगी। जाहिर तौर पर भले ही गत दिनों में कुछ महिलाओं के द्वारा इसका दुरप्रयोग किया जा रहा हो लेकिन यह भी सच है कि उत्पीड़न होता है।

Saturday 5 August 2017

बदल गये मायने, सिमट गयी दोस्ती

मथत मथत माखन रही, दही मही बिलगाव 
रहिमन सोई मीत हैं, भीर परे ठहराय
अर्थात जिस प्रकार मथते मथते दही से माखन ऊपर आ जाता है और दही छांछ में विलय हो जाता है ठीक उसी प्रकार मित्र वह है जो विपत्ति में आपके साथ खड़ा रहता है और माखन रूपी समस्या को अपने मित्र के साथ धारण करे। विपत्ति के समय साथ देने वाला ही सच्चा मित्र कहलाता है।
लेकिन वर्तामान समय में मित्रता का अभिप्राय बदल गया है। आधुनिक समय में मित्रता केवल कुछ माह तक ही सिमट कर रह गयी है। इसके बाद नौकरी बदल जाने पर मित्रता केवल फेसबुक तक ही सिमट कर रह जाती है। जिस समय मनुष्य मित्रता को सर्वापरि रखता था उस समय धोखाधड़ी जैसे अपराध कम होते है। दोस्ती के अनेको उदाहरण पौराणिक काल में मिलते है जब विपत्ति के समय मित्र ने बिना खुद की परवाह किये मित्रता निभाने को प्राथमिकता दी। चाहे वह कृष्ण सुदामा की दोस्ती हो, राम और सु्ग्रीव की दोस्ती हो, पृथ्वी राज चौहान और चन्द्रवरदायी की हो या महाराणा प्रताप औऱ उनके घोड़े चेतक की दोस्ती हो। वास्तविक तौर पर यही प्रमाण सच्ची दोस्ती का मतलब समझाते है।
आज के समय में अगर दोस्ती टूटने के दो प्रमुख कारणों पर ध्यान दिया जाए तो वह केवल एक दूसरे को इग्नोर करने और खुद के बेहतर होने के घमंड के चलते टूटती है। अगर इन दो बातों को इवाइड किया जाए तो दोस्ती टूटने की प्रायिकता बहुत कम हो जाती है।

आमतौर पर कृष्ण सुदामा की मित्रता सभी लोग जानते है और उसके उदाहरण पेश करते है लेकिन वह उदाहरण बन रहे है तो क्यों इस पर किसी का ध्यान नहीं जाता। ध्यान देने योग्य बात यह है कि सुदामा पर जब विपत्ति पड़ी और वह अपने मित्र के पास पहुंचे तो कृष्ण ने बिना खुद की परवाह किये अपने मित्र की मदद की। उस दौरान उन्होंने यह भी नहीं सोचा कि सुदामा ने पहले उनके साथ क्या किया था और न ही उनके मन में यह ख्याल आया कि आने वाले समय में मुझे इनसे क्या काम पड़ेगा जो सुदामा की मदद की जाए।
फिलहाल कहने का उद्देश्य यही है कि मित्रता को एक दिन और कुछ प्लेटफार्मस तक ही सीमित न रखा जाए। इसे निपटाने नहीें बल्कि निभाने का प्रयास किया जाए। 

Tuesday 1 August 2017

अपार क्षमताओं से परिपूर्ण होने के बाद भी कैसे धारण करें विनम्रता


वर्तमान समय में किसी को जरा सी भी ताकत मिल जाने पर वह स्वंय को सर्वश्रेष्ठ समझ दूसरों को नरजअंदाज करने लगता है। वास्तविक तौर पर वह यह भूल जाता है कि यदि उसे कोई शक्ति या विशेष गुणों से सुसज्जित किया गया है तो अवश्य ही वह कुछ अच्छा करने के लिए दिया गया होगा। लेकिन आमतौर पर लोग ताकत, पद, वैभव के मद में चूर हो जाते है। वास्तविक तौर पर हमें कितनी भी शक्तियां मिल जाए लेकिन विनम्रता नहीं छोड़नी चाहिए।
विनम्रता का अद्भुत उदाहरण वाल्मीकि रामायण में हनुमान जी द्वारा संजीवनी बूटी लेने जाने के दौरान देखने को मिलता है। लक्ष्मण के मूर्क्षित हो जाने पर प्रभु श्री राम संजीवनी लाने की जिम्मेदारी अपने सबसे अधिक विश्वासयोग्य और अपार शक्तियों से परिपूर्ण सेवक हनुमान को देते है। इसके बाद जब अपार शक्तियों से परिपूर्ण हनुमान जी जब संजीवनी लेने जाते है तो उनकी विनम्रता और ताकत का अद्भुत मेल जोल देखने को मिलता है। हनुमान जी सूर्य देव से पहले तो प्रार्थना करते है फिर उनको साफ तौर पर अल्टीमेटम देते हैं।


हे सूरज बस इतना याद रहे कि संकट एक सूरज वंश पे है,
लंका के नीच राहु द्वारा आघात दिनेश अंश पे है।
इसलिए छिपे रहना भगवन जब तक न जड़ी पहुंचा दूं मैं,
बस तभी प्रकट होना दिनकर जब संकट निशा मिटा दूं मैं।
मेरे आने से पहले यदि किरणों का चमत्कार होगा,
तो सूर्यवंश में सूर्य देव निश्चित ही अंधकार होगा।
आशा है स्वल्प प्रार्थना यह, सच्चे जी से स्वीकारोगे,
लक्ष्मण की क्षतिग्रस्त अवस्था को होकर करुणार्ध निहारोगे।

हनुमान जी विनम्रता पूर्वक निवेदन करने के बाद सूर्य देव को चेतावनी देते हुए कहते हैं कि 

अन्यथा क्षमा करना दिनकर, अंजनी तनय से पाला है,
बचपन से जान रहे हो तुम हनुमत कितना मतवाला है।
मुख में तुमको धर रखने का फिर वही क्रूर साधन होगा,
बंदी मोचन तब होगा,जब लक्ष्मण का दुःख भंजन होगा।

गुलजार हुई विवेक के घर की गलियां, आखिर एक दिन पहले कहां थे सभी?

राजधानी में शुक्रवार देर रात एप्पल के एरिया सेल्स मैनेजर विवेक तिवारी की गोली मारकर हत्या कर दी गयी। देर रात तकरीबन 1.30 बजे घटित हुई इस घ...